JOURNAL OF INTERDISCIPLINARY RESEARCH

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ISSN 2349-672X

स्वतंत्र बाजार अर्थव्यवस्थाओं में ‘उपभोक्ता बादशाह होता है।’ पहले के कैविट एम्पटर अर्थात् ‘क्रेता स्वयं चौकन्ना रहे’ के सिद्धांत का स्थान अब केविट वैंडिटर अर्थात् ‘विक्रेता को सावधान रहना चाहिए’ ने ले लिया है।
प्रतियोगिता के इस युग में उपभोक्ताओं के पास वस्तुओं की विविधताएँ मौजूद हैं। आज उपभोक्ता अपने द्वारा खर्च किये जाने वाले पैसों से अधिक गुणवत्ता वाली वस्तुएँ प्राप्त करना चाहता है। परन्तु उसमें सदैव विवेकपूर्ण ढंग से वस्तुओं को खरीदने के बारे में आवश्यक योग्यता नहीं होती।
वंचन, विभेद और अन्याय सभी समाजों में अलग-अलग मात्रा में व्याप्त हैं। अन्याय से पीड़ित, निराश, क्रुद्ध और आक्रमक लोगों में विद्रोह की प्रवृत्ति रहती है। इस तरह सामाजिक परिवर्तन पैदा होते हैं। लेकिन हर समाज में अनिवार्यतः सामाजिक परिवर्तन खड़े नहीं हो पाते।
बाजार नियंत्रित समाजों की मूलभूत प्रकृति यह है कि यहाँ उत्पादक एवं उपभोक्ता पूरी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए दो पहियों की तरह काम करते हैं मगर व्यवहारतः उपभोक्ता उत्पादक की तुलना में अधिक आधार प्रदान करता है।
प्रतियोगिता के इस युग में उपभोक्ताओं के पास वस्तुओं की विविधताएँ मौजूद हैं। आज उपभोक्ता अपने द्वारा खर्च किये जाने वाले पैसों से अधिक गुणवत्ता वाली वस्तुएँ प्राप्त करना चाहता है। परन्तु उसमें सदैव विवेकपूर्ण ढंग से वस्तुओं को खरीदने के बारे में आवश्यक योग्यता नहीं होती।
वंचन, विभेद और अन्याय सभी समाजों में अलग-अलग मात्रा में व्याप्त हैं। अन्याय से पीड़ित, निराश, क्रुद्ध और आक्रमक लोगों में विद्रोह की प्रवृत्ति रहती है। इस तरह सामाजिक परिवर्तन पैदा होते हैं। लेकिन हर समाज में अनिवार्यतः सामाजिक परिवर्तन खड़े नहीं हो पाते।
बाजार नियंत्रित समाजों की मूलभूत प्रकृति यह है कि यहाँ उत्पादक एवं उपभोक्ता पूरी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए दो पहियों की तरह काम करते हैं मगर व्यवहारतः उपभोक्ता उत्पादक की तुलना में अधिक आधार प्रदान करता है।

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