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ISSN 2349-672X

भारत में उपभोक्ता संरक्षण और शिकायत निवारण तंत्रः एक अध्ययन

Volume: 3 Issue: 2021-01-01

 

डॉ. गणेश सहनी

एम.ए., पीएच.डी.(राजनीति विज्ञान) बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर।

प्रतियोगिता के इस युग में उपभोक्ताओं के पास वस्तुओं की विविधताएँ मौजूद हैं। आज उपभोक्ता अपने द्वारा खर्च किये जाने वाले पैसों से अधिक गुणवत्ता वाली वस्तुएँ प्राप्त करना चाहता है। परन्तु उसमें सदैव विवेकपूर्ण ढंग से वस्तुओं को खरीदने के बारे में आवश्यक योग्यता नहीं होती।1 ऐसी कई विधियाँ हैं। जिनके द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। विकसित व्यावसायिक इकाइयाँ यह समझती हैं कि उपभोक्ताओं को भली-भाँति सेवा प्रदान करना उनके अपने दीर्घकालीन हित में है। सामाजिक उत्तरदायित्व को मानने वाली इकाइयाँ अपने ग्राहकों से लेन-देन करते समय नैतिक मानक एवं व्यवहार का पालन करती हैं। कई फर्मों ने अपने ग्राहक की शिकायत एवं समस्याओं के समाधान के लिए अपनी स्वयं की उपभोक्ता सेवा एवं शिकायत कक्षों की स्थापना की हैं।2 व्यापार, वाणिज्य एवं व्यवसाय संगठनों जैसे भारतीय वाणिज्य एवं औद्योगिक महासंघ एवं भारतीय उद्योगों का संगठन ने अपनी आचार संहिता बनायी हुई है जिनमें अपने सदस्यों के लिए दिशानिर्देश होते हैं कि वह अपने ग्राहकों से कैसे व्यवहार करें।

उपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के संबंध में शिक्षित करने तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह संगठन व्यावसायिक इकाइयों को अनुचित आचरण एवं उपभोक्ताओं के शोषण से दूर रहने के लिए बाध्य कर सकते हैं। सरकार विभिन्न कानून बना कर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा कर सकती हैं। भारत के कानूनी ढाँचे में ऐसे कई कानून हैं जो उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करते हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण कानून उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2018 है। यह अधिनियम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 का स्थान ग्रहण किया है। इस कानून में उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करने के लिए तीन स्तरीय तंत्र का प्रावधन है जो इस प्रकार हैं जिला स्तर, राज्य स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर। इन तीन स्तरीय तंत्र के अंतर्गत शिकायत निवारण पद्धति का नीचे वर्णन किया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शिकायत निवारण एजेंसियाँ

उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण के लिए कार्यवाही करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर तीन स्तरीय तंत्र की स्थापना की व्यवस्था है जिन्हें क्रमशः जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, राज्य उपभोक्ता निवारण कमीशन एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण कमीशन कहते हैं। इन्हें संक्षेप में जिला फोरम, राज्य कमीषन एवं राष्ट्रीय कमीशन के संक्षिप्त नामों से पुकारा जाता है। राष्ट्रीय कमीशन की स्थापना केंद्रीय सरकार करती है, तो राज्य कमीशन एवं जिला फोरम की स्थापना प्रत्येक राज्य एवं जिलों में संबंधित राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

इन निदान एजेंसियों की संरचना एवं कार्यप्रणाली के अध्ययन से पहले एक नजर इस बात पर भी दौड़ाना भी उचित जान पड़ता है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता की क्या परिभाषा दी है तथा कौन इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज करा सकता है।

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